राजनीती की आपाधापी, रिश्ते-नातों की गलियों और क्या खोया, क्या पाया के बाज़ारों से आगे सोच के रस्ते पर कहीं एक ऐसा नुक्कड़ आता है जहां पहुँच कर इंसान एकाकी हो जाता है तब जग उठाता है कवि फिर शब्दों के रंगों से जीवन की अनोखी तस्वीरें बनती हैं, कविताएँ और गीत सपनो की तरह आते हैं और कागज़ पर हमेशा के लिए घर बना लेते हैं . अटल जी की कविताएँ ऐसे ही पल ऐसे ही क्षणों में लिखी गयी हैं जब सुनने वाले और सुनाने वाले में तुम और मैं की दीवारें टूट जाती हैं दुनिया की सारी धड़कने सिमट कर एक दिल में समा जाती हैं और कवि के शब्द दुनिया के हर संवेदन शील इंसान के शब्द बन जाते हैं .

अद्भुत प्रतिभा के विलक्षण आभा लिए कवि-ह्रदय, भारत-रत्न स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी बिना किसी राग-द्वेष के हर संभव भारत व भारतीयता के साथ दृढ संकल्पित रहे . अपने संघर्षमयी राजनितिक जीवन की अनेक विफलताओं के बाबजूद वह भारत के योग्य एवं सक्षम प्रधानमंत्री रहे. अटल बिहारी वाजपेयी अपने राजनितिक जीवन में हमेशा देशहित में अग्रणी, निर्णायक व दृढ संकल्पित तो थे ही पर आमलोगों के लिए काफी सहज और संवेदनशील थे.

इस जीवन से मृत्यु भली है ,
आतंकित जब गली-गली है
मैं भी रोता आसपास जब
कोई कहीं नहीं रोता है
दूर कही कोई रोता है
 दूर कही कोई रोता है... (:- अटल बिहारी वाजपेयी)

वाजपेयी जी को फिल्मे देखने का बड़ा शौक था खासकर हिंदी फिल्मे. उनके पसंदीदा शाहरुख़ और सलमान रहे और अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में अनेक विशेष शो होते थे. वाजपेयी जी की कविताओं पर संवेदना नाम की एक वीडियो एलबूम भी बनी थी जिसके गाने स्वर्गीय जगजीत सिंह ने गाया था और एल्बम के नायक शाहरुख़ खान थे. अटल जी मात्र एक राजनेता ही नहीं वरन लोगों के दिलों पर राज करनेवाले एक शख्शियत थे ये उनकी अंतिम यात्रा में श्रद्धांजलि देने आये लोगो को देखकर लगता है. इसी कड़ी में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री ने भी उन्हें अपने गानों के माध्यम से याद किया है. भोजपुरी गायक रितेश पाण्डेय के गाये गीत ‘पूरा देश नमन करता है’ को लिखा है गीतकार मनोज मतलबी ने और संगीत से सुरबद्ध किया है अविनाश झा ‘घूँघरू’ जी ने.

पूरा देश नमन करता है’

२६ दिसंबर १९२४ को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीती की शुरुआत अपने छात्र जीवन में भारत छोडो आन्दोलन (Quit India Movement १९४२) में भाग लेने से की और फिर वह राष्ट्रीय स्वयम सेवक संघ से जुड़ गए और फिर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आह्वाहन पर जनसंघ के संस्थापको में से एक रहे. सन १९५७ में एक युवा सांसद के तौर पर तिब्बत संकट ओर १९६२ में चीन से मिली पराजय पर संसद में उनके भाषणों ने सबको प्रभावित किया.

अरसों बाद भारत शर्मा का गाना हुआ रिलीज 

अटल बिहारी वाजपेयी ने नेहरूवादी-कांग्रेस के दबदबे वाले दौर में एक ऐसी वैकल्पिक राजनितिक धारा बनाई जो न केवल कांग्रेस का विकल्प बनी वरन उससे कहीं आगे निकल गयी. कई इतिहासकार व राजनीतिज्ञ उनके निधन को एक युग का अंत बताते हैं लेकिन सच में देखा जय तो आज का सन्दर्भ उस युग की निरंतरता ही है जिस युग के वो प्रवर्तक रहे.

खाने-पीने के शौक़ीन रहे वाजपेयी जी कीमा-समोसा, रसगुल्ला के साथ-साथ हफ्ते में एकबार यूपी वाला खाना पुड़ी-कचौड़ी और आलू-टमाटर या फिर कद्दू की सब्जी ज़रूर खाते थे. वाजपयी जी शिवभक्त थे और अपने बंगले में ही शिवलिंग स्थापित किया था जिसपर वह नियमित रूप से जल चढाते थे . उनके कवि ह्रदय ने उनको स्वप्नदर्शी बनाया. प्रतिभाओं के धनी अटल जी अपने जीवन में वाक्पटु, हाज़िरजवाबी एवं हंसमुख व्यक्ति थे जिनकी एक झलक आपातकाल के दौरान देखने को मिलती है. आपातकाल के समय कमर में तकलीफ के उपचार के लिए जब उन्हें एम्स लाया गया तो डॉक्टर ने पूछा ,”क्या आप झुक गए थे ?” वाजपेयी जी ने आपातकाल के सन्दर्भ में कहा ,“ झुकना तो सिखा ही डॉक्टर साहब , मुड़ गए होंगे|” इसी विचार से उन्होंने बेड पर ही ‘टूट सकते हैं, मगर झुक नहीं सकते’ कविता लिखी.

इतना बड़ा कद होने के बावजूद भी उनकी कोशिश एक आम आदमी की तरह रहने की होती थी . वह कम बोलते थे, सुनते ज्यादा थे पर भाषण के दौरान सब कह जाते थे . शब्दों के जादूगर वाजपेयी जी अपनी वक्तृत्व कला से मुश्किल हालात को भी सहज कर देते थे . जब बोले तो चप्पा-चप्पा शांत हो जाता था . उनके भाषणों को सुनने लोग घंटों पहले पहुँच जाते थे यहाँ तक की उनके घोर विरोधी भी. अटल जी जिस क्षेत्र-प्रान्त में भाषण देते, वहाँ के भूगोल , वहां के इतिहास, वहाँ के संस्कृति की कुछ हद तक जानकारी रखते थे.
बिहार के दरभंगा में जनसभा को संबोधित करते उस समय वहां के लोगों का दिल जीत लिया जब उन्होंने कहा – कर्म से नहीं, जन्म से नहीं, परन्तु नाम से मैं भी बिहारी हूँ.

क्या खोया क्या पाया

भोजपुरी की नयी फिल्म मुन्ना मवाली 

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