प्रमोद प्रेमी के गाये टॉप भोजपुरी  काँवर भजन

वास्तव में संगीत की निकटता परमात्मा से दूरी को मिटाता है या यूं कहें कि हममें आनंद को अभिसरित करता है। संगीत परमात्मा का ही एक सघन रूप है। हिंदुइज़्म और सूफ़ीज़म में इसकी प्रधानता है। पर इस्लाम मे मौसिकी अर्थात संगीत को वर्जित माना जाता है जो थोड़ा उलट है। पर , यकीनन संगीत आपको अपने आप से जोड़ता है। इस बात से आप इनकार नहीं करेंगे। इसीलिए भोजपुरी फिल्म्स ने इस सावन के महीने में कुछ ऐसे भोजपुरी बोलबम के गीतों का संकलन किया है जिसे आप सुनने के बाद ज़रूर दोहरायेंगे। ये भोजपुरी भोलेनाथ भजन प्रमोद प्रेमी ने गाये हैं। भोजपुरी के अलग -अलग सिंगर के भजन आप भोजपुरी फ़िल्म वेब पोर्टल पर देख सकते है जिसमें आप भगवान शंकर से जुड़ी एक कहानी के साथ भजन का भी आनंद लेते है। प्रमोद प्रेमी के गाये भोजपुरी टॉप काँवर भजन (Pramod Premi’s Top Bhojpuri Bhajan) इस कथा को और भी रोचक बनाता है.

Pramod Premi Bhajan
भोजपुरी काँवर भजन : बलम कोई फोटो न खींचें
स्वर – प्रमोद प्रेमी यादव

संगीत : शंकर सिंह ; गीत : कृष्णा बेदर्दी

वैसे तो औघड़दानी भगवान भोलेनाथ की महिमा की कहानियां कई हैं लेकिन आज हम चर्चा करेंगे भगवान शिव के अनोखे श्रृंगार की . जब हम भगवान शिव के रूप को अपने मन में निहारते हैं तो छवि उभरती है एक वैरागी पुरुष की जिनके गले में विषधर सर्पो की मला तथा एक हाथ में त्रिशूल और दुसरे हाथ में डमरू है . अपने जटाओं में गंगा और चन्द्रमा को विराजे शिव की यह प्रतिमा अनायास ही हमारे मन में समाहित हो जाती है . और अगर आप शिवालय जाते हैं तो ये चीजें अनिवार्य रूप से से भगवान शंकर के साथ दीखते हैं . तो क्या यह भगवान शिव के साथ ही प्रकट हुए या कभी किसी अन्य घटनाओं के साथ जुड़े ? आइये जानते है भगवान् भोलेनाथ के हाथों में डमरू , त्रिशूल और मस्तक पर चंद्रमा कहा से आया प्रमोद प्रेमी के गाये टॉप भोजपुरी काँवर भजन के साथ (Pramod Premi Bhajan) .

कैसे आया भगवान् शिव के हाथों में त्रिशूल ?

भोजपुरी काँवर भजन : दरदिया करता कलाई
स्वर – प्रमोद प्रेमी यादव

पौराणिक कथाओं में दो प्रमुख अस्त्रों का वर्णन है पहला धनुष -बाण और त्रिशूल . एक मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है की भगवान शिव ने ही धनुष का अविष्कार स्वयं किया था . लेकिन सबसे सटीक कथा यह है की सृष्टि के आरम्भ में जब ब्रह्मनाद से शिव का प्राकट्य हुआ तो साथ ही रज, तमस और सत गुण भी प्रकट हुए और यही तीनो गुण शिव के त्रिशूल स्वरुप बने . इनके बीच बिना सामंजस्य के सृष्टि का संचालन मुश्किल था . अतः भगवान् शिव ने समस्त संसार के कल्याण के खातिर इन तीनो गुणों अर्थात त्रिशूल को अपने हाथ में धारण किया .

कैसे आया भगवान् शिव के हाथों में डमरू

हम सबने डमरू को देखा तो ज़रूर है पर क्या इनकी बनावट पर आपने कभी गौर किया ? चलिए आज यह राज भोजपुरी फिल्म के इस आर्टिकल से हम आपको बताने जा रहे हैं . आध्यत्मिकता में कहते हैं डमरू ब्रह्म का प्रतीक है जो दूर से विस्तृत नज़र आता है लेकिन करीब जाते जाते वह संकीर्ण होने लगता है और दुसरे सिरे से मिल फिर बड़ा होने लगता है . गौर करें तो इसी कुछ प्रकार से हमारा जीवन भी चलता है . यही सृष्टि का संतुलन भी है जो शिव बनाये रखता है .

Pramod Premi’s Top Bhojpuri Bhajan

भोजपुरी काँवर भजन : घूंघुर वाला कावर लेले अहिओ हे बलमुआ
स्वर – प्रमोद प्रेमी यादव

संगीत : शंकर सिंह ; गीत : शुभ्दयाल सोहरा

वैसे इस डमरू के पीछे एक रोचक कहानी भी है . इस सृष्टि के प्रारंभ में जब विद्या की देवी सरस्वती प्रकट हुयी तो अपने वीणा के तार को छेड़ ध्वनि को जन्म दिया लेकिन यह सुर और संगीत विहीन था . तब भगवान् शिव ने नृत्य करते हुए अपने डमरू को १४ बार बजाया तो व्याकरण और संगीत के छंद और ताल जन्म हुआ तबसे हम शिव को डमरू के साथ ही देखते है .

चन्द्रमा किस प्रकार शिव के मस्तक पर पहुंचा

भोजपुरी काँवर भजन : मड़ईया के सैया बनादी महल
स्वर – प्रमोद प्रेमी यादव

आपने सोमनाथ मंदिर के बारे में तो सुना ही होगा . असल में चन्द्रमा ने अपने क्षय होने के श्राप से बचने के लिए जहां भगवान शंकर की प्रार्थना की वह जगह ही सोमनाथ है जो भारत के गुजरात राज्य में है . शिव पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति के २७ जिनके नाम पर सत्ताईस नक्षत्र भी है, कन्याओं का विवाह चन्द्रमा से हुआ था . इन कन्याओं में चन्द्रमा को सबसे ज्यादा लगाव रोहिणी से था और इसी की शिकायत राजा दक्ष से उनकी अन्य बेटियों ने कर दी और इस प्रकार दक्ष ने चन्द्रमा को क्षय होने श्राप दे दिया. श्राप से मुक्ति हेतु चन्द्रमा ने भगवान् भोले नाथ की कठिन तपस्या की जिससे प्रसन्न हो भगवान् शिव ने न सिर्फ चन्द्रमा के प्राण बचाए वरन उन्हें अपने मस्तक पर धारण भी किया .