पिछली चर्चा में हमने दो पौराणिक कथाओं का जिक्र किया था सावन के महात्म्य को लेकर. हम इसमें भी उसी कथा को आगे बढ़ाते हुए भक्ति संगीत का आनंद लेते भगवान शिव के सबसे पवन महीने सावन के महत्व के बारे में जानेंगे.
The Importance or Mahatva of Sawan month in Hinduism .
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इस प्रकार हमने दो कथाओं में से जाना
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किस प्रकार मार्कंडेय जी को शिव की अनुकम्पा से दीर्घायु ओने का अभय वरदान प्राप्त हुआ, और
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भगवान् के ससुराल जाने की कथा
तेरा दरबार जोगिया : अंकुश-राजा
अब हम तीसरे पौराणिक कथा की बात करेंगे .
३. शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार एक मान्यता यह है कि सावन के महीने में जग के पालनकर्ता भगवान् विष्णु योगमाया की कृपा से योगनिद्रा में चले जाते हैं . इसलिए ये समय भक्तों, साधू-संतों सभी के लिए बहुत ही अमूल्य होता है. इसी समय चौमासा का भी शास्त्र वर्णन करता है . इस प्रकार भगवन विष्णु के योगनिद्रा में चले जाने के कारण सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान् शिव ग्रहण करते हैं और सावन के मुख्य देवता भगवान् शिव होते हैं जो हमारे लालन-पालन का एकमात्र आधार हैं.
भोला तनी कँवर के पॉवर दिखा द हो – निरहुआ व आम्रपाली
४. वेदों में ‘जल’ को देवता माना गया है। किन्तु उसे जल न कहकर ‘आपः’ या ‘आपो देवता’ कहा गया है। ‘ऋग्वेद’ के पूरे चार सूक्त ‘आपो देवता’ के लिए समर्पित हैं.
भारतीय ज्ञान की मूल परम्परा को जानने के लिए पढ़ें वेद:
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बनारस बम बम बोले – पवन सिंह
ऋग्वेद के चार निम्नलिखित सूक्त जो आपो (जल) देवता को समर्पित हैं :
अमूया उप सूर्ये याभिर्वा सूर्यः सह।।
ता नो हिन्वन्त्वध्वरम्।।
अर्थात : जो ये जल सूर्य में (सू्र्य किरणों में) समाहित हैं। अथवा जिन (जलों) के साथ सूर्य का सान्निध्य है, ऐसे ये पवित्र जल हमारे यज्ञ को उपलब्ध हों।
याः सूर्यो रश्मिभिराततान याम्य इन्द्री अरदद् गातुभूर्मिम्।।
तो सिन्धवो वरिवो धातना नो यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः।।
अर्थात : जिस जल को सूर्यदेव अपनी रश्मियों के द्वारा बढ़ाते हैं एवं इन्द्रदेव के द्वारा जिन्हें प्रवाहित होने का मार्ग दिया गया है, हे सिन्धो (जल प्रवाहों)! आप उन जलधाराओं से हमें धन-धान्य से परिपूर्ण करें तथा कल्याणप्रद साधनों से हमारी रक्षा करें।
आपः पृणीत भेषजं वरुथं तन्वे मम।।
ज्योक् च सूर्यं दृशे ।।
अर्थात : हे जल समूह! जीवनरक्षक औषधियों को हमारे शरीर में स्थित करें, जिससे हम निरोग होकर चिरकाल तक सूर्यदेव का दर्शन करते रहें।।
इदमापः प्र वहत यत्किं च दुरितं मयि।।
यद्वाहमभिदु द्रोह यद्वा शेप उतानृतम्।।
हे जलदेवों! हम (याजकों) ने अज्ञानतावशं जो दुष्कृत्य किये हों, जानबूझकर किसी से द्रोह किया हो, सत्पुरुषों पर आक्रोश किया हो या असत्य आचरण किया हो तथा इस प्रकार के हमारे जो भी दोष हों, उन सबको बहाकर दूर करें।।
अठारह पुरानों में से एक शिवपुराण (कम कीमत में शिवपुराण नीचे लिंक से खरीदें ) में ऐसा उल्लेख है कि शिव स्वयम ही जल हैं इसलिए जलाभिषेक कर उनकी अराधना सर्वोत्तम मानी जाती है. इसका एक कारण यह भी है सावन जो वर्षा ऋतू के मध्य में आता है घनघोर बारिश का महीना होता है. फसलों की बोआई-रोपाई का महीना होता है जो भोजन बन हमारे जीवन का आधार होता है. और यह सब बिना जल के असंभव है . वही जल जो शिव है हमारे जीने का आधार है उस जल शिव को अर्पित करते हैं और इसप्रकार सावन का महीना उत्तम शिव के जलाभिषेक के लिए सर्वोत्तम समझा जाता है
भोले बाबा के नगरिया ब्यूटीफुल लागेला – पवन सिंह
५. पौराणिक जातक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन के महीने मंदार पर्वत के द्वारा समुद्र मंथन हुआ था . इस मंथन से जो हलाहल विष निकला भगवन शिव ने उसे पीकर सृष्टि की रक्षा की और इस प्रकार विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया . इसलिए सावन के महीने में शिवलिंग पर जल चढाने का खासा महत्व है .
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इस प्रकार हमने जाना सनातनी हिन्दू परम्परा में सावन मास के अति पावन होने का कारण .
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